आरबीआई/2010-11/211
ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी.बीसी.सं.22/03.05.34/2010-11
22 सितंबर 2010
सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
महोदय,
स्वर्ण ऋण की चुकौती
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अपनी उधार नीति के भाग के रूप में स्वर्ण आभूषण की जमानत पर विभिन्न प्रयोजनों हेतु ऋण प्रदान करते हैं। वर्तमान अनुदेशों के अनुसार (दिनांक 27 मई 2002 का हमारा परिपत्र ग्राआऋवि.आरआरबी.बीसी.सं.96/03.05.34/2001-02 देखें) बैंक, कृषि अग्रिमों को छोड़कर ऋणों और अग्रिमों पर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाते हैं।
2. इस मामले की समीक्षा की गई और यह निर्णय लिया गया है कि एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में एक लाख रुपए तक के स्वर्ण ऋणों की एकमुश्त बड़ी और अंतिम चुकौती की अनुमति दी जाए। अतः क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अनुमति दी जाती है कि वे स्वर्ण ऋण की मंजूरी हेतु निम्नलिखित दिशानिर्देशों के अधीन एकमुश्त बड़ी और अंतिम चुकौती के लिए अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से नीति निर्धारित करें :
i. मंजूर किए गए स्वर्ण ऋण की राशि कभी भी 1.00 लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए।
ii. मंजूरी की तारीख से ऋण की अवधि 12 माह से अधिक न हो।
iii. इस खाते पर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाया जाएगा लेकिन वह मूलधन की चुकौती के साथ भुगतान के लिए देय केवल मंजूरी की तारीख से 12 माह के अंत में ही होगा।
iv. बैंकों को ऐसे ऋणों के मामले में एक न्यूनतम मार्जिन बनाई रखनी चाहिए और तदनुसार प्रतिभूति (स्वर्ण / स्वर्णाभूषण) के मूल्य, मूल्य में संभावित उतार-चढ़ाव तथा ऋण की अवधि के दौरान लगने वाले ब्याज आदि को ध्यान में रखते हुए ऋण सीमा निर्धारित करनी चाहिए।
v. ऐसे ऋण आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण संबंधी मौजूदा मानदंडों से नियंत्रित होंगे तथा मूलधन एवं ब्याज के एक बार अतिदेय हो जाने कि स्थिति में उन पर लागू होंगे।
vi. यदि निर्धारित मार्जिन नहीं बनाई रखी जा रही हो तो इस खाते को चुकौती की तारीख से पहले भी अनर्जक आस्ति (अवमानक श्रेणी) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
3. यह स्पष्ट किया जाता है कि स्वर्ण / स्वर्णाभूषण की संपार्श्विक प्रतिभूति पर मंजूर फसल ऋणों पर आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण संबंधी मौजूदा मानदंड लागू रहेंगे।
भवदीय
( बी.पी.विजयेन्द्र )
मुख्य महाप्रबंधक