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उपदान (ग्रेच्युटी) सीमाओं मे वृद्धि - वि‍वेकपूर्ण वि‍नि‍यामक व्यवहार

आरबीआइ/2010-11/527
ग्राआऋवि.केंका. आरआरबी.बीसी. सं.70 /03.05.33/2010-11   

16   मई  2011

अध्‍यक्ष
सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

महोदय

उपदान (ग्रेच्युटी) सीमाओं मे वृद्धि - वि‍वेकपूर्ण वि‍नि‍यामक व्यवहार

उपदान संदाय अधि‍नि‍यम, 1972 में संशोधन के बाद उपदान सीमाओं में वृद्धि के परि‍णामस्वरूप क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने इस स्थि‍ति‍ के कारण वृद् धिशील व्यय ‍की राशि के परि‍शोधन के लि‍ए हमसे संपर्क कि‍या है ।

2.   उपदान सीमाओं में वृद्धि‍ के कारण संपूर्ण अति‍रि‍क्‍त देयता की गणना की जानी चाहि‍ए और वि‍त्‍तीय वर्ष 2010-11 के लि‍ए उक्‍त देयता लाभ और हानि‍ खाते में प्रभारि‍त की जानी चाहि‍ए ।

3.  तथापि‍, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने कहा है कि‍ इतनी बड़ी राशि‍ को कि‍सी एक वर्ष में खपाना उनके लि‍ए कठि‍न होगा । हमने वि‍नि‍यामक दृष्‍टि‍कोण से इस मुद्दे  की समीक्षा की है और यह नि‍र्णय लि‍या गया है कि‍ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक इस मामले में नि‍म्नलि‍खि‍त कार्रवाई कर सकते हैं :

क)  उपर्युक्त पैराग्राफ 2 में उल्लि‍खि‍त प्रकार से यदि‍ व्यय को वि‍त्‍तीय वर्ष  2010-11 के दौरान लाभ और हानि‍ खाता में पूर्णत: प्रभारि‍त नहीं  कि‍या गया है तो 31 मार्च 2011 को समाप्त वित्‍तीय वर्ष से प्रारंभ होने वाली पाँच वर्ष की अवधि‍ के दौरान उसका परि‍शोधन {नीचे दि‍ये गये पैरा (ख) के अधीन} कि‍या जा सकता है बशर्ते प्रत्येक वर्ष कुल राशि‍ का कम-से-कम 1/5 भाग परि‍शोधि‍त कि‍या जाए ।

ख)  उपर्युक्‍त प्रकार आगे ले जाए गए अपरि‍शोधि‍त व्यय में सेवा से अलग हुए/सेवानि‍वृत्त कर्मचारि‍यों से संबंधि‍त कोई राशि‍ शामि‍ल नहीं होगी ।

4.  इस संबंध में अपनायी गई लेखांकन नीति‍ के संबंध में समुचि‍त प्रकटीकरण वि‍त्तीय वि‍वरणों की "लेखाओं के संबंध में टि‍प्पणी" के अंतर्गत कि‍या जाना चाहि‍ए।

5.  कृपया हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को इस परिपत्र की प्राप्ति सूचना दें।

भवदीय 

( सी.डी.श्रीनिवासन )
मुख्य महाप्रबंधक

अनुः यथोक्‍त

 
 
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